भारत @ 75: आज़ादी के बाद की बड़ी उपलब्धियाँ

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इस लेख में हम आपको आज़ाद भारत की कुछ बड़ी उपलब्धियों के बारे में बताएँगे।

अगर हमें किसी ऐसे स्थान पर रख दिया जाए जहाँ सभी तरह की सुविधाएँ हों लेकिन हमसे आज़ादी छीन ली जाए तो क्या हम उस स्थान पर रह पाएँगे। मेरा ख्याल है कि आज़ादी से बड़ी कोई सुविधा नहीं होती है। पराधीन मनुष्य खूँटे पर बंधे उस जानवर के समान होता है जो चाहकर भी अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकता। हम भी 200 सालों तक अंग्रेजी हुकूमत के पिंजरे में कैद रहे और कठिन संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को खुली हवा में साँस ले पाए। हमने अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ादी तो पा ली लेकिन इतने लंबे वक्त तक गुलामी में रहते हुए हमारे पंख कट चुके थे। अंग्रेजों ने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश को पूरी तरह से खोखला कर दिया था। ऐसे में आज जब हम आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं तो इस बात पर विचार करना आवश्यक हो जाता है कि इन 75 सालों में हम कहाँ पहुँचे और क्या उपलब्धियाँ हासिल की? तो चलिये जानते हैं 75 सालों में भारत द्वारा अर्जित की गई कुछ बड़ी उपलब्धियों के बारे में-

अनाज की कमी से लेकर अनाज का निर्यातक बनने तक का सफर

अंग्रेजों ने कृषि व्यवस्था को इस हाल में पहुँचा दिया था कि आज़ादी के समय देश के पास न तो पर्याप्त अनाज था और न ही अनाज उत्पादन के लिये आधारभूत सुविधाएँ थी। साल 1950-51 में केवल 5 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता था जो कि देश की 35 करोड़ जनसंख्या का पेट भरने के लिये पर्याप्त नहीं था। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज़ादी के 15 साल बाद 1962 में हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देश की जनता से एक वक्त उपवास रखने की अपील करनी पड़ी थी। उन्होंने अपने आह्वान में कहा था ‘पेट पर रस्सी बाँधो, साग-सब्जी ज़्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो।’

इस स्थिति से जल्द से जल्द निपटने के लिये भारतीय राजनेताओं ने भूमि सुधार, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, कृषि में वैज्ञानिक विधियों व अनुसंधान को बढ़ावा देने और हरित क्रांति समेत कई बड़े कदम उठाए। समय के साथ-साथ नई-नई प्रौद्योगिकी व मशीनों के इस्तेमाल से अनाज का उत्पादन बढ़ाने में सहायता मिली। नतीजा यह हुआ कि आज भारत न सिर्फ अपनी समूची जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध करवाता है बल्कि कृषि उत्पादों का निर्यात भी करता है। वर्तमान में भारत खाद्य उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है।

चाँद पर लहराया तिरंगा

भारत में आधुनिक अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई को माना जाता है। उन्होंने 15 अगस्त 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो; ISRO) की स्थापना की और जल्द ही उसे नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। देश का पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ था जिसे 19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। पहले उपग्रह के सफलतापूर्वक प्रक्षेपित होने के बाद भारत ने एक के बाद एक कीर्तिमान स्थापित करने शुरू किए। 7 जून 1979 को भारत का दूसरा उपग्रह ‘भास्कर’ पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।

इसके अलावा 22 अक्टूबर 2008 को इसरो द्वारा चंद्रयान-1 भेजा गया जो 14 नवंबर 2008 को चंद्रमा की धरती पर पहुँचा। चंद्रयान-1 ने चाँद पर भारतीय तिरंगा लहराकर इतिहास रच दिया और चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया। यह जानकर गर्व होगा कि चंद्रयान-1 ने ही चाँद पर पानी की खोज की थी। इसके बाद, साल 2014 में भारत ने मंगलयान को मंगल की सतह पर उतारकर एक नई उपलब्धि हासिल की तो 15 फरवरी 2017 को पीएसएलवी (PSLV) ने एक साथ 104 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर विश्व रिकॉर्ड बनाया। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, 22 जुलाई 2019 को भारत ने दूसरे चंद्रमिशन चंद्रयान-2 को रवाना किया। लेकिन दुर्भाग्यवश चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया और चाँद के दक्षिणी ध्रुव तक की यह यात्रा अधूरी रह गई। फिलहाल हमारी जिज्ञासा का ही परिणाम है कि आज भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में इतनी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर चुका है।

महादेवी वर्मा द्वारा रची गयी यह पंक्तियाँ भारत की जिज्ञासा और निरंतर कोशिश को उजागर करती हैं-

“तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस पार क्या है
जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?”

इसरो का अब बड़ा मिशन गगनयान का है जिसमें अंतरिक्षयात्री को भेजने की योजना है। वर्तमान में अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भी भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है जिससे अंतरिक्ष खोजों में और तेजी लाई जा सके।

आधुनिक हथियारों व उपकरणों से लैस भारतीय सैन्य बल

विषम परिस्थितियों में भारत की अखंडता की रक्षा करने वाली भारतीय सेना का गठन ब्रिटिश शासन काल में हुआ था। आज़ाद भारत में भी साल 1962 तक भारतीय सेना के पास पर्याप्त और आधुनिक हथियार नहीं थे। नतीजतन 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था। उसी दौरान यह अहसास हुआ कि भारतीय सेना को मज़बूत बनाने के लिये आधुनिक हथियार व उपकरण बेहद ज़रूरी हैं।

1962 के बाद भारतीय सैनिकों की संख्या 5, 50,000 से बढ़ाकर 8,25,000 कर दी गई। इसके साथ ही सेना के प्रशिक्षण, संगठन और सिद्धांतों में भी अनेक बदलाव किये गये। यंत्रीकरण के जरिये भारतीय सेना की क्षमता को बढ़ाया गया। वर्तमान में भारतीय सेना के पास राफेल, सुखोई, मिराज, जगुआर, तेजस, मिग-29 व मिग-21 जैसे लड़ाकू विमान, बैलेस्टिक, आकाश, पृथ्वी जैसी मिसाइलें, अर्जुन और टी-90 भीष्म जैसे टैंक, आईएनएस विक्रमादित्य जैसे एयरक्राफ्ट्स, आईएनएस अरिहंत, आईएनएस करंज जैसी पनडुब्बियाँ और आधुनिक रायफल्स जैसे विध्वंसक हथियार हैं। महिलाओं को सशस्त्र सेना में शामिल करना भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

ओलंपिक में भारत की झोली में बढ़ी पदकों की संख्या

पहली बार भारत ने वर्ष 1900 के पेरिस ओलंपिक खेलों में भाग लिया था। कई सालों तक देश की झोली में एक या दो पदक ही आते थे। साल 2012 के लंदन ओलंपिक में देश को सर्वाधिक 6 पदक मिले थे लेकिन टोक्यो 2020 भारत का सबसे सफल ओलंपिक साबित हुआ। इसमें भारत ने अपने पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए कुल 7 पदक (एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य) अपने नाम किये। अब तक खेले गए 24 ओलंपिक में देश को कुल 35 मेडल मिले हैं जिनमें 10 गोल्ड, 9 सिल्वर और 16 ब्रान्ज हैं।

विश्व कप की ट्रॉफी पर भी भारत ने जमाया कब्जा

वैसे तो क्रिकेट इंग्लैण्ड का राष्ट्रीय खेल है लेकिन आज दुनिया भर में भारतीय क्रिकेट टीम का दबदबा है। भारतीय क्रिकेटर्स ने कई बार शानदार पारी खेलकर देश को गर्व करने का मौका दिया है। साल 1983 में कपिल देव की कप्तानी में भारत ने पहला विश्व कप जीतकर इतिहास रचा। उसके बाद 2007 में पहले टी-20 विश्व कप और 2011 में दूसरे आईसीसी विश्व कप की ट्रॉफी पर भी भारत का कब्जा रहा है।

स्टार्टअप से बढ़ रहे रोजगार के अवसर

आज़ादी के कई सालों बाद तक भी भारत में अपना स्टार्टअप शुरू करने के बारे में बहुत कम लोग ही सोचते थे। लेकिन आज भारत में स्टार्टअप की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के मुताबिक, देश में 61,400 पंजीकृत स्टार्टअप हैं। विगत दशक में स्टार्टअप के जरिए 6.6 लाख प्रत्यक्ष और 34 लाख अप्रत्यक्ष रोजगारों का सृजन हुआ। इतना ही नहीं, हाल ही में भारत में यूनिकॉर्न की संख्या 100 तक पहुँच गई है। जानकर अच्छा लगेगा कि भारत, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है। साल 2020 में इन स्टार्टअप ने भारतीय अर्थव्यवस्था में 10 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार किया था, जो 2021 में बढ़कर 24 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया।

महिलाओं ने तय की चार दीवारी से अंतरिक्ष तक की यात्रा

आज़ादी के सात दशकों के सफर में देश की महिलाओं के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। पिता की संपत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर हक दिलाने वाले कानूनी अधिकार समेत अन्य कई अधिकारों को प्रदान कर महिलाओं को मज़बूत बनाया गया है। साथ ही, तीन तलाक जैसे बंधनों से छुटकारा मिलना भी महिलाओं को आज़ादी दिलाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है।

आज देश की महिलाएँ घर की चार-दीवारी से बाहर निकलकर देश के बहुआयामी विकास में अपना अमूल्य योगदान दे रही हैं। 50 साल की उम्र में ब्यूटी स्टार्टअप ‘नायका’ (Nykaa) की स्थापना करने वाली फाल्गुनी नायर, टोक्यो ओलंपिक-2020 में रजत पदक जीतने वाली मीराबाई चानू, महिला फाइटर पायलट भावना कंठ, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली बछेंद्री पाल, अरुणिमा सिन्हा और अंतरिक्ष की सैर करने वाली कल्पना चावला सहित अनेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने मिशाल कायम की है।

इनके अलावा, आज़ादी के 75 सालों में शिक्षा, स्वास्थ्य भारतीय बैंकिग, परिवहन सेवा, इंटरनेट कनेक्टिविटी और मीडिया सहित अन्य कई क्षेत्रों में भी आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं। एक समय स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव से गुजर रहे भारत का कोरोना जैसी महामारी में औषधियों और वैक्सीन का वैश्विक आपूर्तिकर्ता बनना एक बड़ी उपलब्धि है। हमें अपनी इन उपलब्धियों पर ज़रूर गर्व करना चाहिये लेकिन इन सबके बीच प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा कही गई बात को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा था ‘जिस उपलब्धि की हम खुशियाँ मना रहे हैं, वो नए अवसरों के खुलने के लिये केवल एक कदम है। इससे भी बड़ी जीत और उपलब्धियाँ हमारा इंतजार कर रही हैं। भविष्य में हमें आराम नहीं करना है और न चैन से बैठना है बल्कि लगातार कोशिश करना है।’

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