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1857 ई• की क्रांति
1857 ई• की क्रांति का संघर्ष भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारतीयों का प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम था जो सैनिक क्रांति के माध्यम से प्रारंभ हुआ था। इसका वास्तविक स्वरूप कुछ भी क्यों ना हो, शीघ्र ही यह भारत में अंग्रेजी सत्ता के लिए एक चुनौती का प्रतीक बन गया।
1857 ई• की क्रांति के विषय में इतिहासकारों और विद्वानों ने अलग-अलग मत दिए हैं जो निम्नलिखित हैं–
1. सर जॉन लॉरेंस के अनुसार — यह एक सैनिक क्रांति थी
2. सर जेम्स आउट्रम के अनुसार — यह एक मुस्लिम षड्यंत्र था क्योंकि भारतीय मुसलमान ने दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह के नेतृत्व में अंग्रेजों को भारत से निकाल कर पुनः देश पर अपनी सत्ता स्थापित करने का सशस्त्र प्रयत्न किया था।
3. वीर सावरकर के अनुसार — यह भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम था।
4. अशोक मेहता के अनुसार — यह भारत का प्रथमराष्ट्रीय आंदोलन था।
5. एल• ई• आर• रीज के अनुसार — यह धर्मांद्रो का ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध था।
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1857 ई0 की क्रांति के कारण
राजनीतिक कारण —
- 1. राज्यों को हड़पने की नीत — 1857 ई• की क्रांति का प्रमुख कारण लॉर्ड डलहौजी की राज्य अपहरण नीति थी। इस नीति के द्वारा डलहौजी ने संतान हीन भारतीय राजाओं पर उत्तराधिकारी निषेध एवं गोद निषेध नियम लागू कर उनके राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिला लियाा। परिणाम स्वरुप भारतीय राजाओं में अत्यधिक असंतोष उत्पन्न हो गया और वे अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष को तैयार हो गए। इनमें सातारा, नागपुर तथा झांसी के राज्य प्रमुख थे।
- 2. पेंशन तथा पदों की समाप्ति — लॉर्ड डलहौजी ने पेंशन तथा लोगों के पदों को छीनने का प्रयास किया। उसकी इस नीति के शिकार पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब हुए। फलतः नाना साहब ने विद्रोह का सहारा लिया।
- 3. सरकारी नौकरियों में भेदभाव — सरकारी नौकरी में उच्च पदों पर केवल ब्रिटिश नागरिक ही नियुक्त किए जाते थेे। भारतीयों को उच्च सेवा करने का अधिकार नहीं था। फलतः भारतीय बुद्धिजीवी के मन में क्रांति की ज्वाला फूट पड़ी।
- 4. भारतीयों में अंग्रेजी शासन के प्रति अविश्वास — कंपनी के अधिकारी कभी भी भारतीय जनता का विश्वास नहीं प्राप्त कर सके। वह सदैव विदेशी बने रहेे।फलतः भारतीय जनता के साथ अंग्रेजों का विश्वास कभी भी स्थापित ना हो सका, जो बाद में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का कारण बना।
आर्थिक कारण
- 1. अंग्रेजों की आर्थिक शोषण की नीति — अंग्रेजों की आर्थिक नीतियां भारतीय व्यापार और उद्योगों के विरुद्ध थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के राजनीतिक शक्ति के प्रयोग के फलस्वरुप भारतीय हस्तशिल्प और व्यापार का सर्वनाश हो गया। अंग्रेजों ने भारतीय सूती कपड़े व अन्य उद्योगों से उत्पादित वस्तुओं पर भारी कल लगाकर भारतीय व्यापारियों की आर्थिक स्थिति को चौपट कर दिया और धीरे-धीरे अंग्रेजी उत्पादों को भारतीय मंडियों में भर दिया। परिणाम स्वरूप भारत का व्यापारियों का अंत हो गया।
- 2. भारतीय उद्योगों का विनाश — अंग्रेजों की आर्थिक साम्राज्यवाद की नीतियों ने भारत के उद्योगों को चौपट कर दिया। यहां के हस्तशिल्पो का पतन होने लगा। भारत के कारीगरों का बना माल मशीनों से बने माल के सामने टिक न सका।
- 3. बेरोजगारी की समस्या — अंग्रेजों की इसी आर्थिक नीति के कारण बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो गई। वस्त्र उद्योग में लगे जुलाहे पूर्णतः बेकार हो गए।
धार्मिक कारण
- 1. ईसाई धर्म का प्रचार — अंग्रेजों ने भारतीयों का धार्मिक उत्पीड़न किया। अंग्रेज अधिकारी मेजर एडवर्ड्स स्पष्ट रूप से कहा था, “भारत पर हमारे अधिकार का अंतिम उद्देश्य पूरे देश को इसाई बनाना हैै।” अंग्रेज अधिकारी भारतीय सैनिकों को ईसाई बनने के लिए प्रेरित करते थे। अंग्रेजों की यह धर्मांतरण की नीति उनके विरुद्ध संघर्ष का कारण बन गई।
- 2. गोद निषेध की नीति — लॉर्ड डलहौजी ने गोद लेने की प्रथा का अंत कर दिया और भारतीयों की धार्मिक भावनाओं का तिरस्कार कर दिया। जिससे भारतीय अंग्रेजो के विरुद्ध होते चले गए।
- 3. धार्मिक भेदभाव की नीति — सरकार की ओर से ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों को आर्थिक सहायता दी जाने लगी तथा उन्हें सरकारी नौकरी भी आसानी से प्राप्त होने लगी। इससे भी भारतीय समाज में अंग्रेजों के प्रति प्रतिशोध की भावना पैदा हो गई।
सामाजिक कारण
- 1. भारतीयों के प्रति भेदभाव की नीति — अंग्रेज भारतीयों को हिना समझते थे तथा उनका सामाजिक तिरस्कार करते थेे। भारतीयों को सामाजिक अपमान स्वीकार नहीं था। इससे भी भारतीय अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध आंदोलन करने लगे।
- 2. भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार — यूरोपीय अधिकारी वर्ग भारतीयों के प्रति बहुत कठोर था। वे भारतीयों को काले अथवा सूअर की संज्ञा देते थेे। अंग्रेज प्रत्येक अवसर पर भारतीयों का अपमान करने से नहीं चूकते थे। इससे भी भारतीय अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
सैनिक कारण
- 1. उच्च पदों से वंचित भारतीय — सेना में ऊंचे से ऊंचा पद जो किसी भारतीय को मिल सकता था वह सूबेदार का था। जिसमें केवल ₹60 या ₹70 मासिक वेतन मिलता था। इसमें पद वृद्धि के अवसर बहुत ही कम थे। सामान पदों पर कार्य करते हुए भी भारतीय सैनिकों को व सुख सुविधा नहीं प्राप्त होती थी, जो अंग्रेज सैनिकों को प्रदान की जाती थी। भेदभाव की इस नीति ने सैनिकों में क्रांति की भावना भर दी।
- 2. चर्बी युक्त कारतूसों का प्रयोग –– 1856 में अंग्रेजी सरकार ने पुरानी लोहे वाली बंदूक के स्थान पर एक नई राइफल का इस्तेमाल करने लगे, जो पुरानी बंदूकों से अधिक अच्छी थी। इस नई राइफल में कारतूस के ऊपरी भाग को मुंह से काटना पड़ता था। जनवरी 1857 में बंगाल सेना में यह बात फैल गई कि नई राइफल के कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी है। सैनिकों को विश्वास हो गया कि चर्बी वाले कारतूसो का प्रयोग उन्हें धर्मभ्रष्ट करने का एक निश्चित षड्यंत्र है। परिणाम स्वरूप सैनिकों में क्रांति की ज्वाला भड़क गई।
- 3. वेतन में समानता — अंग्रेज सिपाहियों की अपेक्षा भारतीय सिपाहियों को कम वेतन मिलता था। इस असमानता के कारण भी भारतीय अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
1857 ई• की क्रांति
भारतीयों को अपने इस स्वाधीनता आंदोलन में असफलता का सामना करना पड़ा। वास्तव में यह आंदोलन शीघ्र ही अंग्रेजी सत्ता के लिए चुनौती बन कर खड़ा हो गया। इसके परिणाम बड़े ही महत्वपूर्ण थे। जो निम्नलिखित हैं —
- 1. भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का पूरी तरह अंत हो गया और भारत पर ब्रिटिश शासन का अधिकार समाप्त हो गया।
- 2. ब्रिटिश सरकार ने बोर्ड ऑफ कंट्रोल तथा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को भंग करके उनके स्थान पर भारतीय राज्य सचिव की व्यवस्था की, जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की काउंसिल बनाई गई। गवर्नर जनरल के पद नाम में परिवर्तन कर उसे वायसराय कर दिया गया।
- 3. इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया ने 1858 ई• में घोषणा करके भारतीयों को उदारवादी शासन तथा अन्य सुविधाएं देने का आश्वासन दिया।
- 4. भारत में ब्रिटिश सेना के अंतर्गत भारतीय सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गई।
- 5. इस क्रांति के फलस्वरूप अंग्रेजों और भारतीयों में संघर्ष उत्पन्न हो गया।
- 6. अंग्रेजों ने हिंदू-मुस्लिम जनता में फूट डालकर शासन करने की नीति अपनाई।
- 7. भारत में राष्ट्रीय जागरण को नई दिशा प्राप्त हुई।
- 8. भारतीयों में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए संघर्ष की भावना उत्पन्न हुई।
- 9. भारत में वैधानिक शासन का विकास प्रारंभ हो गया।
- 10. 1857 ई• की क्रांति नेेे भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ें हिला कर रख दी।
FAQ
Q.1 मंगल पांडे को फांसी कब दी गई?
Ans. 8 अप्रैल 1857 ई•
Q.2 मेरठ में सैनिक संघर्ष कब हुआ?
Ans. 10 मई 1857 ई•
Q.3 नाना साहब का वास्तविक नाम क्या था?
Ans. धुन्धु पंत
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