जर्मनी का एकीकरण | Unification of Germany

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जर्मनी का एकीकरण

नेपोलियन की पराजय के पश्चात वियना कांग्रेस ने जर्मनी को 39 राज्यों में विभाजित कर दिया। जर्मनी के राष्ट्रवादी विचारक इससे संतुष्ट नहीं थे। फलतः राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत हुई, इसका मुख्य केंद्र जेनेवा विश्वविद्यालय बना। विद्यार्थियों तथा राष्ट्रवादी विचारकों ने मिलकर वर्शेनशेप्ट नामक एक संगठन बनाया। इसका उद्देश्य जर्मनी में जनजागरण करना थाा। इस जन आंदोलन को रोकने के लिए प्रशा के सम्राट विलियम प्रथम ने कार्ल्सबाड नामक स्थान पर जर्मनी के प्रमुख राज्यों की बैठक बुलाकर आंदोलनकारियों के लिए नियम बनाएं। लेकिन फिर भी राष्ट्र वादियों की गतिविधियां दबी नहीं।

1830 तथा 1848 ई• की फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर जर्मनी के राष्ट्रवादी विचारको ने पुनः निरंकुश शासन के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ कर दियाा। जर्मनी के देशभक्तों ने जर्मनी के लिए संविधान बनाने के लिए एक सभा बुलाई जिसमें विभिन्न राज्यों के 550 निर्वाचित सदस्योंं ने भाग लिया। इस संसद ने प्रशा के शासक फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ को संपूर्ण जर्मनी का शासक चुन लिया किंतु उसने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। यदि वह इस प्रस्ताव को मान लेता तो 1849 ई• में ही जर्मनी का एकीकरण हो जाता किंतु उसके मना करने के कारण ऐसा नहीं हो सका।

1858 ई• में प्रशा का शासक फ्रेडरिक विलियम अस्वस्थ हो गया। जिससे शासन की बागडोर उसके भाई विलियम ने संभाली 1862 ई• में विलियम ने बिस्मार्क को प्रशा का प्रधानमंत्री नियुक्त कियाा। बिस्मार्क ने दो युद्धों के माध्यम से जर्मनी का एकीकरण पूर्ण किया।

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डेनमार्क का युद्ध

श्लेसविग तथा होल्सटाइन के प्रदेश जर्मनी तथा डेनमार्क के मध्य स्थित थे। डेनमार्क तथा प्रशा दोनो इन्हें अपने अपने अधिकार में चाहते थे अतः ऑस्ट्रिया तथा प्रशा की सम्मिलित सेनाओं ने डेनमार्क के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। डेनमार्क को विवश होकर संधि करने पड़ी। वियना की संधि के अनुसार होल्सटाइन तथा लारेनबर्ग प्रशा तथा ऑस्ट्रेलिया को प्राप्त हो गए। बाद में गैसटाइन के समझौते के फल स्वरुप होल्सटाइन पर ऑस्ट्रिया तथा श्लेसविग पर प्रशा का अधिकार हो गया। 

फ्रांस-प्रशा युद्ध

सेरेजोवा के युद्ध में जर्मनी का प्रभाव बढ़ा दिया था। यह बात फ्रांस को अच्छी नहीं लगी। फ्रांस का शासक नेपोलियन तृतीय जर्मनी राज्यों को जर्मन संघ में सम्मिलित नहीं होने देना चाहता था। उत्तर जर्मन राज्य संघ की स्थापना से भी फ्रांस अपने को असुरक्षित समझने लगा था। उसी समय स्पेन के रिक्त सिंहासन का मामला सामने आया। स्पेन में जर्मनी राजवंश के राजकुमार को आमंत्रित कर लिया गया। यह बात भी फ्रांस को अच्छी नहीं लगी। आता उसने इसका विरोध किया। 15 जुलाई 1870 ई• को फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। युद्ध में फ्रांस की पराजय हुई और नेपोलियन तृतीय बंदी बना लिया गया। अंत में 1871 ई• में दोनों देशों के मध्य फ्रैंकफर्ट की संधि हुई।

जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान

ऑटो वॉन बिस्मार्क का जन्म 1815 ई• में ब्रांडेनबर्ग के एक जमीदार परिवार में हुआ था। वह बहुत बुद्धिमान था। उसकी प्रारंभिक शिक्षा बर्लिन में हुई थी। उसने गोर्टिजन विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इसके पश्चात है वह प्रशा की नागरिक सेवा में भर्ती हो गया परंतु उसका मन नौकरी में नहीं लगा। 2 वर्ष बाद उसने नौकरी छोड़ दी। उसने इंग्लैंड, फ्रांस आदि यूरोपीय देशों की यात्रा भी की। 1845 ई• में वह पोमेरेनिया की संसद का सदस्य नियुक्तत हुआ। 

1848 ई• में उसने जनता द्वारा जर्मनी के एकीकरण का विरोध किया। फ्रैंकफर्ट की राष्ट्रीय महासभा की भी उसने आलोचना की। 1862 ई• में प्रशा के शासक विलियम प्रथम ने उसे प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कियाा। बिस्मार्क लोकतंत्र तथा क्रांतिकारी विचारों का विरोधी था। वह राजतंत्र और सैनिक वाद का प्रबल समर्थक था।

उसका लक्ष्य जर्मनी का एकीकरण करना था। एकीकरण के मार्ग में वह ऑस्ट्रिया को सबसे बड़ा बाधक मानता थाा। उसका विश्वास था कि युद्ध द्वारा ही ऑस्ट्रिया को जर्मनी के बाहर निकाला जा सकता है। उसका उद्देश्य प्रशा को यूरोप का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य बनाना था। बिस्मार्क ने रक्त और लौह की नीति से 3 युद्धो द्वारा जर्मनी का एकीकरण पूर्ण किया। जर्मनी के एकीकरण का संपूर्ण श्रेय बिस्मार्क को जाता है।

FAQ

Q.1 जर्मनी का एकीकरण कब हुआ?

Ans. 1990 ई• में

Q.2 जर्मनी के एकीकरण का श्रेय किसको जाता है?

Ans. बिस्मार्क को

Q.3 कितने युद्धों के बाद जर्मनी का एकीकरण पूर्ण हुआ?

Ans. तीन युद्धों बाद

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